वो बंजारन दिखने वाली #स्त्री नाचने और गायन माहिर थी #ढोलक पर #थाप पड़ते गाने लगी #आवाज में अथाह दर्द था पड़ोस के किसी समारोह मे जब देखा, उसमे एक सुखद आकर्षण था सितारों और शीशे से जड़ित उसका लहंगा खूबसूरत बहुत था कैसे!!? अपने संगठन से दूर अपनी कला का प्रदर्शन कर रही थी पूछने पर पता चला कि किसी अंजान से प्यार करने की ये मिली सजा अपने ही बंजारा समाज़ ने उसे निकाल बाहर किया #बेकारी और #भूख से #व्याकुल होकर उसने अपना हुनर बेच दिया सोचती हूँ!! कितना कठोर होता है प्रेम... स्त्री होती है बरबाद अक्सर प्रेम में और पुरुष फैसला लेने से भी घबराता है पुरुष प्रेम तलाशता है, पूरा नहीं अधूरा जीता है स्त्री प्रेम तराशती है, अपनी कर्मठता के गुणों से ©Manju Sharma