ज्ञानरूपिणी जगतपालिनी सरस्वती माँ मेरी संस्कार देने में माता की न तुमने देरी , अपने भक्तों को माता तुमने झट गले लगाया अज्ञानी भी तुम्हें पूजकर ज्ञानवान कहलाया , स्वर निकले वीणा से माँ झन झन झनकार हुई है और व्यंजन की उत्पत्ति का भी सार यही है , स्वर व्यंजन के मिलने से शब्दों का ज्ञान मिला है वीणापाणि के वंदन से शिक्षित संसार खिला है , माता के आराधन से नित संस्कार पाये है कृपा भारती की मुझपर जो उसके गुण गाये हैं, संस्कार देती है भारती ज्ञानस्वरूपा माता संस्कार भारती बनाकर संघ तेरे गुण गाता, जय हो शारदे सरस्वती आशीष तेरा मैं पाऊँ अपने तुच्छ प्रयासों से मैं कलम चलाता जाऊँ | #शारदे के चरणों में समर्पित