ताज्जुब इस ज़माने की चाल से नहीं इसके बदलते दौर से है। दर्द की कैफ़ियत से ख़फ़ा नहीं बेअसर दवा की ओर से है। शिकायत मुट्ठी में भरी क़िस्मत से नहीं हाथों मे बनी अधूरी लकीरों से है। नज़र तेरी हर वक़्त ना हो प्रीत पर गिला नहीं कभी ना देने वाले ज़रा से ग़ौर से है। तकलीफ़ अकेलापन से तो है ही नहीं अंदर के शोर से है!! ©@mukesh_inscribe# #fitoor_e_Zindagi