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गुलदस्ता ज़िन्दगी, चिराग बंदगी मैं सोचता हूँ छोड़ दू

गुलदस्ता ज़िन्दगी, चिराग बंदगी
मैं सोचता हूँ छोड़ दूँ थोड़ी दरिंदगी ।
सिगरेट है, शराब है इफरात शबाब है,
न्योता सादगी को भी दे थोड़ी जगह दे रिन्दगी।
चाहतों का सिलसिला बड़ा तो शौक बिगड़ने लगे,
रवैया घर कर गया मन्दिर में छोड़ी ज़िन्दगी।

फूल तोड़कर घर की बैठक में गुलदस्ता सजा लेते हैं,
ये वो सलीका है कत्ल करके भी लोग इतराते ज़िदगी।

मैं तो केक पर जलती मोमबत्तियां देखकर सोचता हूं,
जैसे आगजनी के बाद अधजली ख्वाहिशें टेबल पर परोसे ज़िदगी।

अब ये शराब मिलकर कोई साज़िश रच रही है शायद,
गिलास खाली नहीं उठ रहा है तुझसे ए ऐबे-ज़िदगी।
गुलदस्ता ज़िन्दगी, चिराग बंदगी
मैं सोचता हूँ छोड़ दूँ थोड़ी दरिंदगी ।
सिगरेट है, शराब है इफरात शबाब है,
न्योता सादगी को भी दे थोड़ी जगह दे रिन्दगी।
चाहतों का सिलसिला बड़ा तो शौक बिगड़ने लगे,
रवैया घर कर गया मन्दिर में छोड़ी ज़िन्दगी।

फूल तोड़कर घर की बैठक में गुलदस्ता सजा लेते हैं,
ये वो सलीका है कत्ल करके भी लोग इतराते ज़िदगी।

मैं तो केक पर जलती मोमबत्तियां देखकर सोचता हूं,
जैसे आगजनी के बाद अधजली ख्वाहिशें टेबल पर परोसे ज़िदगी।

अब ये शराब मिलकर कोई साज़िश रच रही है शायद,
गिलास खाली नहीं उठ रहा है तुझसे ए ऐबे-ज़िदगी।