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देखीं जो एक बार देखता ही रह गया मैं उनकी आंखें होत

देखीं जो एक बार देखता ही रह गया मैं उनकी आंखें
होता था कमाल जब निहारती थीं मुझे उनकी आंखें

सवालों की थी फैक्ट्री कोई जैसे उन नज़रों में
मैं देता जवाब करती कोई सवाल जब उनकी आंखें

होंठों के ऊपर वो बाईं तरफ काला तिल
पकड़ लेती थीं मुझे निहारते हर बार उनकी आंखें

मैं बैठा था शांत समन्दर सा उसके सामने
मिल जाती मुझसे लहराती नदी सी उनकी आंखें

वो मेरे सवालों पर चेहरा छुपाना हाथों से
करती थीं छुप-छुपकर इज़हार उनकी आंखें

यूँ तो क़त्ल किये हैं कई उन निगाहों ने
फिर भी रही हमेशा ही बा-इज़्ज़त उनकी आंखें

दस मिनट की देर जो मुझे घर पहुंचने में होती
वो दरवाज़े को ही निहारती बारहा उनकी आंखें

लेकर हाथों में हाथ जब चूमता पेशानी उनकी
शर्म से सुर्ख रुख़सार और झुक जाती उनकी आँखें

झगड़े के बाद जब होती बातचीत बंद उनसे
तो भी बड़े प्यार से बतियाती मुझसे उनकी आँखें

ख़्वाब क़ैद हैं कई उन आँखों में
कभी बताती कभी छुपाती उनकी आँखें

देखता हूँ अपना पूरा जहान उन आँखों में मैं
मुझे अपना पूरा जहान बताती उनकी आँखें

©Prashant Shakun "कातिब" देखीं जो एक बार देखता ही रह गया मैं उनकी आंखें
होता था कमाल जब निहारती थीं मुझे उनकी आंखें

सवालों की थी फैक्ट्री कोई जैसे उन नज़रों में
मैं देता जवाब करती कोई सवाल जब उनकी आंखें

होंठों के ऊपर वो बाईं तरफ काला तिल
पकड़ लेती थीं मुझे निहारते हर बार उनकी आंखें
देखीं जो एक बार देखता ही रह गया मैं उनकी आंखें
होता था कमाल जब निहारती थीं मुझे उनकी आंखें

सवालों की थी फैक्ट्री कोई जैसे उन नज़रों में
मैं देता जवाब करती कोई सवाल जब उनकी आंखें

होंठों के ऊपर वो बाईं तरफ काला तिल
पकड़ लेती थीं मुझे निहारते हर बार उनकी आंखें

मैं बैठा था शांत समन्दर सा उसके सामने
मिल जाती मुझसे लहराती नदी सी उनकी आंखें

वो मेरे सवालों पर चेहरा छुपाना हाथों से
करती थीं छुप-छुपकर इज़हार उनकी आंखें

यूँ तो क़त्ल किये हैं कई उन निगाहों ने
फिर भी रही हमेशा ही बा-इज़्ज़त उनकी आंखें

दस मिनट की देर जो मुझे घर पहुंचने में होती
वो दरवाज़े को ही निहारती बारहा उनकी आंखें

लेकर हाथों में हाथ जब चूमता पेशानी उनकी
शर्म से सुर्ख रुख़सार और झुक जाती उनकी आँखें

झगड़े के बाद जब होती बातचीत बंद उनसे
तो भी बड़े प्यार से बतियाती मुझसे उनकी आँखें

ख़्वाब क़ैद हैं कई उन आँखों में
कभी बताती कभी छुपाती उनकी आँखें

देखता हूँ अपना पूरा जहान उन आँखों में मैं
मुझे अपना पूरा जहान बताती उनकी आँखें

©Prashant Shakun "कातिब" देखीं जो एक बार देखता ही रह गया मैं उनकी आंखें
होता था कमाल जब निहारती थीं मुझे उनकी आंखें

सवालों की थी फैक्ट्री कोई जैसे उन नज़रों में
मैं देता जवाब करती कोई सवाल जब उनकी आंखें

होंठों के ऊपर वो बाईं तरफ काला तिल
पकड़ लेती थीं मुझे निहारते हर बार उनकी आंखें