कहाँ जाना है रातों में कहाँ पे दिन बिताना है यहीं पे रह के हँसना है या कहीं रोने भी जाना है कौन से ख़त को रखना है और किसको जलाना है उजाले में ही रहना है या चराग़ों को बुझाना है। हाँ, मैं अक्सर भूल जाता हूँ।। किसी की बात सुननी है या उसको कुछ सुनाना है शमा के संग जीना है या उस पर मर ही जाना है करनी है मोहब्बत फिर या अबके डर भी जाना है राहों में भटकना है या वापस घर को जाना है। हाँ, मैं अक्सर भूल जाता हूँ।। सफ़र में चलते रहना है या थक कर ठहर जाना है फ़लक से बात करनी है, चाँद लेकर के आना है उसे दिन भर याद करके फिर, शाम को भूल जाना है हर शब में उसको लिखना है, सहर होते मिटाना है। हाँ, मैं अक्सर भूल जाता हूँ।। उसे अपना समझना है, या अब वो भी बेगाना है यहाँ क्या ही हक़ीक़त है और क्या ही फसाना है छुपाना है ज़माने से या हुनर सबको दिखाना है हुआ क्यों ही मैं पागल हूँ हुआ क्यों वो दिवाना है। हाँ, मैं अक्सर भूल जाता हूँ।। मुनीर नियाज़ी साहब की नज़्म "हमेशा देर कर देता हूँ मैं" से याद आया कि "हाँ, मैं अक्सर भूल जाता हूँ" बहोत कुछ जो याद होता है मुझे।। #nojoto #hameshabhuljatahoon