सफ़र की शाम हो गयी, तुम्हें फ़ुरसत न मिल पायी घड़ी भर सांस लेने की कभी मोहलत न मिल पायी बहुत से चाँद निकले, रात बीतीं, फिर से दिन आये रहे मसरूफ़ तुम उनको कोई इज़्ज़त न मिल पायी भले ही रोशनी में तुम चले बन कर मेरा साया अंधेरों में हमें जज़्बों की वो ज़ीनत न मिल पायी भरी महफ़िल को जो लफ़्ज़ों से अपने चश्म-नम कर दें मग़र अश्क़ों को उनके लफ़्ज़ों की दौलत न मिल पायी बहुत वादे किये थे हाथ जब थामा मुहब्बत में मगर करते वो क्या हमसे ही जब फ़ितरत न मिल पायी -अंजलि राज देखते-देखते मेरे सफ़र की शाम हो गई। #सफ़रकीशाम #collab #yqdidi #YourQuoteAndMine Collaborating with YourQuote Didi #अंजलिउवाच #फ़ुरसत #फ़ितरत