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शहरी रौनक देखकर, छोड़ा अपना गांँव। मारा मारा मैं फ

शहरी रौनक देखकर, छोड़ा अपना गांँव।
मारा मारा मैं फिरूं, नहीं मिली थी ठांँव।
नहीं मिली थी ठांँव, ढूंढता फिरूं ठिकाना।
रुपये से मैं हीन, मिलेगा कैसे खाना।
फूटी किस्मत यार,लगी सब दुनिया बहरी।
लौटा अपने गांँव,नहीं अब बनना शहरी।ननौ

©Tarun Rastogi kalamkar #जिंदगीकेकिस्से
शहरी रौनक देखकर, छोड़ा अपना गांँव।
मारा मारा मैं फिरूं, नहीं मिली थी ठांँव।
नहीं मिली थी ठांँव, ढूंढता फिरूं ठिकाना।
रुपये से मैं हीन, मिलेगा कैसे खाना।
फूटी किस्मत यार,लगी सब दुनिया बहरी।
लौटा अपने गांँव,नहीं अब बनना शहरी।ननौ

©Tarun Rastogi kalamkar #जिंदगीकेकिस्से