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मैं तुझसे दूर अब रह न सकूं.. कुछ कहना चाहूं कह न

 मैं तुझसे दूर अब रह न सकूं..
कुछ कहना चाहूं कह न सकूं..
      ये मन जो इतना विचलित है
      बस तू ही इसमें समिलित हैं
कुछ ऐसा कर दे जतन प्रिये..
हो जाऊ मैं तो मगन प्रिये..
    तू चाहे तो रोगी कह ले
    या मतवाला जोगी कह ले
अब तुझको याद मैं करते करते
अपना होश भुला बैठा..
मैं तुझसे प्रीत लगा बैठा..
   मैं तुझको मीत बना बैठा
   मैं तुझको मीत बना बैठा

©Durgesh Dewan
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