मैं दिन का रवि था, वो रात की शशि थी। ये मेरे कुछ ख्वाब थे जिनमें मेरे सपनों की डोर फ़सी थी।। फ़िज़ाओं से उसकी खुशबू सी आती थी, जो दिल मे एक चाहत सी जगा जाती थी। मैं ढूंढता रहता था दिन भर उसे, वो रात को बाहर आती थी।। मैं दिन का रवि था वो रात...... मैं चलता रहा इन हवाओं के साथ, इन्तजार में उस शाम के, क्योंकि एक शाम ही ऐसी बेला थी, जब हम दोनों की मुलाक़ात हो पाती थी।। मैं दिन का रवि था और वो रात की शशि.... वो शाम कितनी हसीन थी, जब बादलों की घूंघट में, कभी मै छुप जाता था, कभी वो छिप जाती थी। मैं दिन का रवि था और वो रात की शशि .... जब दिल ने ये जाना था, कि मैं हो रहा उसका दीवाना था, तब मुझे उसे बहुत कुछ बताना था, लेकिन उसे तो बस अपनी ही सुनानी थी।। मैं दिन का रवि औऱ वो रात की शशि.... मैं उसके लिए अन्जाना था। लेकिन, मेरी निगाहों ने, उसे पेहली नज़र में ही पेहचानी थी, मैं दिन का रवि और वो रात की शशि..... कुछ तो बात थी उसमें, जिसका मैं दीवाना था। अब बस इस दिल को ये समझाना था, कि कितना मुश्किल सूरज और चांद का मिल पाना था।। #वो_शाम मैं दिन का रवि था, वो रात की शशि थी। ये मेरे कुछ ख्वाब थे जिनमें मेरे सपनों की डोर फ़सी थी।। फ़िज़ाओं से उसकी खुशबू सी आती थी, जो दिल मे एक चाहत सी जगा जाती थी। मैं ढूंढता रहता था दिन भर उसे,