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कुंठित मन्न से कलम पकड़ आभा न सवारी जाती है अभिमति

कुंठित मन्न से कलम पकड़ 
आभा न सवारी जाती है
अभिमति के कारक संग
काली राहे न काटी जाती है 
लंका है तुम्हारी  तुम लंका के 
मगर तुम राम नहीं 
तो पास हीं रखो लंका अपनी 
संकीर्ण मन्न से न खैरातें बाँटी जाती हैं
दिल के निर्झर से बहती हुई 
वो मोद की बातें कुछ और हीं है
 वैसे ढोंगी मन्न से
सुन्दर मुस्काने भी
न दिल में उतारी जाती हैं 
दुनिया के भोज-पत्र पर भी
हम सज् हैं जीवन बिताने को
मगर जब तक विग्रह ना हो 
इस दक्ष समाज के 
कुछ निपुण रिवाजों पर
ये चलती हुई  न जिन्दगी गुजारी जाती  है #tryNEW
कुंठित मन्न से कलम पकड़ 
आभा न सवारी जाती है
अभिमति के कारक संग
काली राहे न काटी जाती है 
लंका है तुम्हारी  तुम लंका के 
मगर तुम राम नहीं 
तो पास हीं रखो लंका अपनी 
संकीर्ण मन्न से न खैरातें बाँटी जाती हैं
दिल के निर्झर से बहती हुई 
वो मोद की बातें कुछ और हीं है
 वैसे ढोंगी मन्न से
सुन्दर मुस्काने भी
न दिल में उतारी जाती हैं 
दुनिया के भोज-पत्र पर भी
हम सज् हैं जीवन बिताने को
मगर जब तक विग्रह ना हो 
इस दक्ष समाज के 
कुछ निपुण रिवाजों पर
ये चलती हुई  न जिन्दगी गुजारी जाती  है #tryNEW