ना जाने क्यों। [पूर्ण कविता कैप्शन में पढ़ें।] ना जाने क्यों, कुछ खालीपन सा लगता है, तू है, फिर भी अकेलापन खाए जाता है, ना जाने क्यों, ये खालीपन पीछा नहीं छोड़ता। अकेले में बस यही सोचती हूँ, तुम्हारे होने से ही अन्तर है, पर अब तेरा होना या ना होना भी,