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प्रेम अक्सर हारती है स्त्री ! वो जीतती है तो केवल

प्रेम
अक्सर 
हारती है स्त्री !
वो जीतती है तो केवल
पुरुष की आकांक्षाएँ
खाव !
पाने की चाहत, 
झूठी बड़ाई,
और वो सब जिसे पुरुष
औरत की खामियाँ बता कर
पुरुष होने का दावा करता है।
स्त्री पुरुष के हर सोच को अपने
सिराहने रख हर रोज सो जाती हैं
तमस के न जाने कितने घाव 
उसके जिस्म को
बिछावन भरे आग पर सेकती है
पुरुष के हर वो झूठी आह
जिसे औरत अपना सबकुछ समझती है
जिसे देख औरत हार जाती है।
बिरह के हर वो गीत जो
झूठे प्रेम को अंकुरित करता है 
औरत बेबस व लाचार होकर
टूट जाती है 
और खो देती है औरत के वो गुण
जिसे पाने की चाह में मर्द उम्र भर 
खुद को कोसता है।
पर कभी उसे पा नही सकता।

©सौरभ अश्क #Throat  

#Smile
प्रेम
अक्सर 
हारती है स्त्री !
वो जीतती है तो केवल
पुरुष की आकांक्षाएँ
खाव !
पाने की चाहत, 
झूठी बड़ाई,
और वो सब जिसे पुरुष
औरत की खामियाँ बता कर
पुरुष होने का दावा करता है।
स्त्री पुरुष के हर सोच को अपने
सिराहने रख हर रोज सो जाती हैं
तमस के न जाने कितने घाव 
उसके जिस्म को
बिछावन भरे आग पर सेकती है
पुरुष के हर वो झूठी आह
जिसे औरत अपना सबकुछ समझती है
जिसे देख औरत हार जाती है।
बिरह के हर वो गीत जो
झूठे प्रेम को अंकुरित करता है 
औरत बेबस व लाचार होकर
टूट जाती है 
और खो देती है औरत के वो गुण
जिसे पाने की चाह में मर्द उम्र भर 
खुद को कोसता है।
पर कभी उसे पा नही सकता।

©सौरभ अश्क #Throat  

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