रंग सभी ये समर्पित उनको जो खाए सीने गोली हैं.. उनके ही सम्मान में मनती रोज दिवाली होली है.. घर अपना परिवार छोड़ सब, जो सरहद पर जाते, विपदाओं के साथ खेलते, फिर भी वो मुस्काते,, हां जिसके चट्टान सा बल है, फौलादी है सीना, देश की खातिर मरना भी है, देश की खातिर जीना,, भारत माँ के माथे चढ़ती हल्दी कुमकुम रोली है.. उनके ही सम्मान में मनती रोज दिवाली होली है.. मेहनत से ही लड़कर के जो, अन्न हमें देता है, जाने कितनी रातों को फिर, वह भूखा सोता है,, और सियासत के कुछ बौनें, बस महल बैठ खाते हैं, ढेर विकास की झूठी बातें, पन्नों में कह जाते हैं,, आँसू के वो घर में रहता,खोई हसी-ठिठोली है.. उनके ही सम्मान में मनती रोज दिवाली होली है.. ~ प्रियांशु कुशवाहा "प्रिय" गीत- ( रोज दिवाली होली है...) रंग सभी ये समर्पित उनको जो खाते सीने गोली हैं.. उनके ही सम्मान में मनती रोज दिवाली होली है.. घर अपना परिवार छोड़ सब, जो सरहद पर जाते,