ज़हर-ए-ख्वाब, स्याही बनकर जिश्म से उतर गया।। (Read in caption) मेरे ज़हन में वो ज़हर-ए-ख्वाब जैसे फैलता ही जा रहा था रोकने की बहुत कोशिश की उसे पर वो जैसे मेरे खून में घुलता ही जा रहा था।। ✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨ वो नीला रंग मेरे बदन का जैसे अपनो को खोने का दर्द दे रहा था अब किसीसे मिल न पाऊँगी दोबारा ये डर अब सता रहा था।।