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आज भी मुंतज़िर क्यों हो शब-ए-वस्ल को "शानियाज़" जिस

आज भी मुंतज़िर क्यों हो शब-ए-वस्ल को "शानियाज़"
जिस दिये पे तुम्हें नाज़ था वह अब कहीं और रौशन है shab e vasl..milan ki raat
आज भी मुंतज़िर क्यों हो शब-ए-वस्ल को "शानियाज़"
जिस दिये पे तुम्हें नाज़ था वह अब कहीं और रौशन है shab e vasl..milan ki raat