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"भीष्म पितामह" अपनी शक्ति की ध्वजा हाथों में लहरात

"भीष्म पितामह"
अपनी शक्ति की ध्वजा हाथों में लहराता हुआ,
वो बढ़ा अपनो में शस्त्रों को बरसाता हुआ।
कोई नही हैं आज जो रोक पाए वीर को,
दुश्मनों के मध्य भी जो न माने हार को।
जिनको खिलाया था कभी पालने में,
उनको लगा अभी मृत्युलोक पहुचाने में।
नेत्रों को अश्रुओं से भर प्रत्यंचा को चढ़ाया,
हृदय सम्भाल, युद्ध को सत्य धर्म बतलाया।
एक ओर अर्जुन लगे प्राणों से भी प्यारा,
दूसरी ओर कदाचित वचन न टूटे तुम्हारा।
तुमने कसम खाई श्रीकृष्ण को सुदर्शन सम्भालवाने की,
शिखंडी ने भी ठानी तुम्हें अर्जुन के द्वारा मरवाने की।
हैं आज देखो माँ बाण गंगा का प्यार बेटा,
बेबस मृत्यु को व्याकुल बाण शैया पर प्यासा लेटा।
जब प्यासे अधर बुलाते है, तब अर्जुन प्यास बुझाते हैं,
ये कैसे नाते-रिश्ते हैं, पहिये में काल के पिसते हैं।
विवेक सिंह राजावत।

 भीष्म पितामह
"भीष्म पितामह"
अपनी शक्ति की ध्वजा हाथों में लहराता हुआ,
वो बढ़ा अपनो में शस्त्रों को बरसाता हुआ।
कोई नही हैं आज जो रोक पाए वीर को,
दुश्मनों के मध्य भी जो न माने हार को।
जिनको खिलाया था कभी पालने में,
उनको लगा अभी मृत्युलोक पहुचाने में।
नेत्रों को अश्रुओं से भर प्रत्यंचा को चढ़ाया,
हृदय सम्भाल, युद्ध को सत्य धर्म बतलाया।
एक ओर अर्जुन लगे प्राणों से भी प्यारा,
दूसरी ओर कदाचित वचन न टूटे तुम्हारा।
तुमने कसम खाई श्रीकृष्ण को सुदर्शन सम्भालवाने की,
शिखंडी ने भी ठानी तुम्हें अर्जुन के द्वारा मरवाने की।
हैं आज देखो माँ बाण गंगा का प्यार बेटा,
बेबस मृत्यु को व्याकुल बाण शैया पर प्यासा लेटा।
जब प्यासे अधर बुलाते है, तब अर्जुन प्यास बुझाते हैं,
ये कैसे नाते-रिश्ते हैं, पहिये में काल के पिसते हैं।
विवेक सिंह राजावत।

 भीष्म पितामह