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कृष्ण विवर बन के कर देते समय को त्राहि अंतर्ध्यान

कृष्ण विवर बन के कर देते समय को त्राहि
अंतर्ध्यान न कर पाए अंबर की छाती
विरह में जल के एक दिवस हैं टूटना हमको
भौतिकता के विवरण के न होंगे दासी।

अल्हड़ से बादल भी हमको रोक न पाते,
काश के दो तारे नभ के, यूं टकराते।

(कैप्शन में आगे पढ़े...) झुलस के आग में दोनों ही जल जाते,
काश के दो तारे नभ के, यूं टकराते।

सर्द हवाओं के बंधन में आग के गोले,
भेट करे कैसे तुमसे, कैसे कुछ बोले?
दूरी शेष नहीं होती दोनों जो स्थिर है
विरह की अग्नि दोनों में ही अधीर है।
कृष्ण विवर बन के कर देते समय को त्राहि
अंतर्ध्यान न कर पाए अंबर की छाती
विरह में जल के एक दिवस हैं टूटना हमको
भौतिकता के विवरण के न होंगे दासी।

अल्हड़ से बादल भी हमको रोक न पाते,
काश के दो तारे नभ के, यूं टकराते।

(कैप्शन में आगे पढ़े...) झुलस के आग में दोनों ही जल जाते,
काश के दो तारे नभ के, यूं टकराते।

सर्द हवाओं के बंधन में आग के गोले,
भेट करे कैसे तुमसे, कैसे कुछ बोले?
दूरी शेष नहीं होती दोनों जो स्थिर है
विरह की अग्नि दोनों में ही अधीर है।
amargupta4255

amar gupta

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