हुक़ूमत-ए-ज़ुल्मत चल रही हर तरफ़। कोई जुगनू निकल भी आए तो क्या हो? मशालें बुझ कर ख़ाक तो हो ही चुकीं हैं! कोई अलाव जल भी जाए तो क्या हो? मिज़ाज मौसम का भी शायद ठीक नहीं! यूँ दो चार बूंदे पड़ भी जाएं तो क्या हो? सिरे से बदले हो या बदल दिया गया है! बूढ़ा दरख़्त दिख भी जाए तो क्या हो? दुहाई देते दिखते हैं हर बात पे हाक़िम! कोई हुक्मरां दिख भी जाए तो क्या हो? चुल्लूभर पानी को तरस गए नदी-नवारे, "पंछी" तट पे दिख भी जाए तो क्या हो? #पाठकपुराण की ओर से शुभसंध्या साथियो। 🌷😊💕🍹🍫🍹😊😊 मैंने एक कोशिश की है ठीक ठीक हुई हो तो मुझे बतायें न भी हुई हो तो मेरा मन रखने के लिए ही सही जरूर बतायें।आपका स्वागत है। #उर्दुकीपाठशाला के साथ #ज़ुल्मत शब्द का प्रयोग किया जिसका अर्थ अंधकार/ नीरसता के समान ही है। जो #collabwithकोराकाग़ज़ के साथ पूर्ण किया।