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भरी दुनियाँ पर है अकेला, भीड़ में रह कर भी इंसान अ

भरी दुनियाँ  पर है अकेला,
भीड़ में रह कर भी इंसान
अच्छे थे वो कच्चे घर,कच्चे रास्ते,
साहूलियत, तरक्की दे कर,
 सच्ची ख़ुशी लेता गया विज्ञान,
सबकुछ है पर कुछ नहीं
बहुत शोर है और तन्हाई भी 
वक़्त की रेस में भागता नितदिन
दो पल का सुख चैन नहीं
दिल की बातें दिल में ही जवालामुखी बनाती हैं
बैठ कर अब कहाँ- कहीं,
वो मीठी बातें हो पाती हैं
उलझन में उलझा हर पल बच्चा बूढ़ा और जवान,
मशीनीयुग में अब तो बस मशीन बन रह गया इंसान |

©Rajni Sardana
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