Nojoto: Largest Storytelling Platform

कुछ रिश्तों को खोया कुछ रिश्तों का पा गया। ज़िन्दग

कुछ रिश्तों को खोया कुछ रिश्तों का पा गया।
ज़िन्दगी की दौड़ में ना जाने मैं कहां आ गया।

कभी- कभी इस चकाचौंध से सहम सा जाता हूँ।
हजारों की भीड़ में खुदको जब तन्हा पाता हूँ। 

हमारे लिये तो वो बचपन का दिन ही प्यारा था।
टूटा-फूटा ही सही पर वो घर तो हमारा था।

जब देखता हूँ मुड़कर आँखे भर जाती है।
घर के आंगन में बैठी माँ नज़र आती हैं।

ऐसा लगता है आंचल में रखकर सर माँ मुझको सुला रही है।
कभी गुस्से से कभी प्यार से माँ मुझको बुला रही है।

जी करता है माँ कहकर गले से लिपट जाउं। 
बिन उनके दिल नहीं लगता है उनको ये बताउं।

आखें खुलते ही माँ का चेहरा धूधला नज़र आता है।
फिर वहीं अकेलेपन का डर मुझको सताता है।

हक़ीक़त से होते ही रुबरु आसूओं को बहा गया।
ज़िन्दगी की दौड़ में ना जाने मैं कहां आ गया।
---दिलीप--- #जिंदगी की दौड़
कुछ रिश्तों को खोया कुछ रिश्तों का पा गया।
ज़िन्दगी की दौड़ में ना जाने मैं कहां आ गया।

कभी- कभी इस चकाचौंध से सहम सा जाता हूँ।
हजारों की भीड़ में खुदको जब तन्हा पाता हूँ। 

हमारे लिये तो वो बचपन का दिन ही प्यारा था।
टूटा-फूटा ही सही पर वो घर तो हमारा था।

जब देखता हूँ मुड़कर आँखे भर जाती है।
घर के आंगन में बैठी माँ नज़र आती हैं।

ऐसा लगता है आंचल में रखकर सर माँ मुझको सुला रही है।
कभी गुस्से से कभी प्यार से माँ मुझको बुला रही है।

जी करता है माँ कहकर गले से लिपट जाउं। 
बिन उनके दिल नहीं लगता है उनको ये बताउं।

आखें खुलते ही माँ का चेहरा धूधला नज़र आता है।
फिर वहीं अकेलेपन का डर मुझको सताता है।

हक़ीक़त से होते ही रुबरु आसूओं को बहा गया।
ज़िन्दगी की दौड़ में ना जाने मैं कहां आ गया।
---दिलीप--- #जिंदगी की दौड़
dilipkumar8121

Dilip Kumar

New Creator