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" मेरे शामों को तुम अपनी सहर दे जा , हसरतें ख्याल

" मेरे शामों को तुम अपनी सहर दे जा ,
हसरतें ख्याल जो हैं उसे तु अपनी तसबूर दे जा ,
रहे हैं जिस अंदाज में उसे अपनी हकीकत दे जा ,
मिल जरा तु कहीं तन्हाई से अपनी कुछ परछाईं दे जा ,
जो मैं गुनगुनाता उसे तेरे खातिर कहीं मैं गा सकु ,
मिल जरा तु मुझसे कहीं फिर कहीं जाकर खुद से मिल सकु . " 

                                    --- रबिन्द्र राम " मेरे शामों को तुम अपनी सहर दे जा ,
हसरतें ख्याल जो हैं उसे तु अपनी तसबूर दे जा ,
रहे हैं जिस अंदाज में उसे अपनी हकीकत दे जा ,
मिल जरा तु कहीं तन्हाई से अपनी कुछ परछाईं दे जा ,
जो मैं गुनगुनाता उसे तेरे खातिर कहीं मैं गा सकु ,
मिल जरा तु मुझसे कहीं फिर कहीं जाकर खुद से मिल सकु . " 

                                    --- रबिन्द्र राम
" मेरे शामों को तुम अपनी सहर दे जा ,
हसरतें ख्याल जो हैं उसे तु अपनी तसबूर दे जा ,
रहे हैं जिस अंदाज में उसे अपनी हकीकत दे जा ,
मिल जरा तु कहीं तन्हाई से अपनी कुछ परछाईं दे जा ,
जो मैं गुनगुनाता उसे तेरे खातिर कहीं मैं गा सकु ,
मिल जरा तु मुझसे कहीं फिर कहीं जाकर खुद से मिल सकु . " 

                                    --- रबिन्द्र राम " मेरे शामों को तुम अपनी सहर दे जा ,
हसरतें ख्याल जो हैं उसे तु अपनी तसबूर दे जा ,
रहे हैं जिस अंदाज में उसे अपनी हकीकत दे जा ,
मिल जरा तु कहीं तन्हाई से अपनी कुछ परछाईं दे जा ,
जो मैं गुनगुनाता उसे तेरे खातिर कहीं मैं गा सकु ,
मिल जरा तु मुझसे कहीं फिर कहीं जाकर खुद से मिल सकु . " 

                                    --- रबिन्द्र राम