मेरा चेहरा... तुम्हें किताब का लुत्फ़ देता है क्या? अक़्सर खोल कर पढ़ने बैठ जाया करते हो तुम। मत किया करो ऐसा मैं सच मान बैठती हूँ हमेशा, बातों को वादा समझ ख़्वाब बुन बैठती हूँ हमेशा, मेरा इंतज़ार... तुम्हें स्वाद का लुत्फ़ देता है क्या? अक़्सर घोल कर बढ़ाने बैठ जाया करते हो तुम। फ़ैसले भी तेरे, फ़ासले भी तेरे तो मेरा क्या कसूर, रूठे भी तू, टूटे भी तू साथ मेरे तो मेरा क्या कसूर, मेरा मनाना... तुम्हें तुलना का लुत्फ़ देता है क्या? अक़्सर तोल कर, लड़ने बैठ जाया करते हो तुम। मेरा चेहरा... तुम्हें किताब का लुत्फ़ देता है क्या? अक्सर खोल कर पढ़ने बैठ जाया करते हो तुम। रमज़ान 24वाँ दिन #रमज़ान_कोराकाग़ज़