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स्मृतियाँ स्मृतियों का स्पंदन, खींचता है मन को,

स्मृतियाँ

स्मृतियों का स्पंदन,
खींचता है मन को, 
उस दौर में, जिसमें;
मैं नहीं जा सकता।

स्पंदन का श्रम जारी है,
इस दौर की जद्दोजेहद,
उस दौर पर कुछ भारी है,
पर विवशता नहीं हारी है।

स्मृतियों का दोष नही है,
हमें ही होश नही था, उन;
स्मृतियों से संविदा करते वक्त।

हम लचीले, निरीह, निर्मल,
निरपेक्ष, निष्पक्ष, निश्छल थे
और स्मृतियाँ हमारे दिल में,
जीवन में जगह बनाती गई...।

डॉ आनंद दाधीच 'दधीचि'

©Anand Dadhich #स्मृतियाँ #kaviananddadhich #poetsofindia #poetananddadhich #hindipoetry
स्मृतियाँ

स्मृतियों का स्पंदन,
खींचता है मन को, 
उस दौर में, जिसमें;
मैं नहीं जा सकता।

स्पंदन का श्रम जारी है,
इस दौर की जद्दोजेहद,
उस दौर पर कुछ भारी है,
पर विवशता नहीं हारी है।

स्मृतियों का दोष नही है,
हमें ही होश नही था, उन;
स्मृतियों से संविदा करते वक्त।

हम लचीले, निरीह, निर्मल,
निरपेक्ष, निष्पक्ष, निश्छल थे
और स्मृतियाँ हमारे दिल में,
जीवन में जगह बनाती गई...।

डॉ आनंद दाधीच 'दधीचि'

©Anand Dadhich #स्मृतियाँ #kaviananddadhich #poetsofindia #poetananddadhich #hindipoetry