तस्वीरें एक वीरान मकान सा मैं, हवा से बहते लम्हों को, कैद करने की , मशक़्क़त करते रहता हूं। कुछ लम्हों को कैद करके, संदूक में भी रख देता हूं। फिर भी पता नहीं, वो कैसे आजाद हो जाते हैं, मैं उन्हें टटोलता भी हूं, फिर भी वो लम्हे नहीं मिलते। ख़ैर छोड़ो, इन्हें कोई कैद नहीं कर सकता। पर मैं, कोशिश तो, कर ही सकता हूं। © राहुल भास्करे तस्वीरें एक वीरान मकान सा मैं, हवा से बहते लम्हों को, कैद करने की मशक़्क़त करते रहता हूं। कुछ लम्हों को कैद करके,