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।। ओ३म् ।। तद्वां॑ नरा॒ शंस्यं॑ पज्रि॒येण॑ क॒क्षी

।। ओ३म् ।।

तद्वां॑ नरा॒ शंस्यं॑ पज्रि॒येण॑ क॒क्षीव॑ता नासत्या॒ परि॑ज्मन्।
 श॒फादश्व॑स्य वा॒जिनो॒ जना॑य श॒तं कु॒म्भाँ अ॑सिञ्चतं॒ मधू॑नाम् ॥

पद पाठ
तत्। वा॒म्। न॒रा॒। शंस्य॑म्। प॒ज्रि॒येण॑। क॒क्षीव॑ता। ना॒स॒त्या॒। परि॑ज्मन्। श॒फात्। अश्व॑स्य। वा॒जिनः॑। जना॑य। श॒तम्। कु॒म्भान्। अ॒सि॒ञ्च॒त॒म्। मधू॑नाम् ॥

राजपुरुषों को चाहिये कि मनुष्य आदि प्राणियों के सुख के लिये मार्ग में अनेक घड़ों के जल से नित्य सींचाव कराया करें, जिससे घोड़े, बैल आदि के पैरों की खूदन से धूर न उड़े। और जिससे मार्ग में अपनी सेना के जन सुख से आवें-जावें। इस प्रकार ऐसे प्रशंसित कामों को करके प्रजाजनों को निरन्तर आनन्द देवें ॥

Rajpurush should ensure that for the happiness of human beings and other animals, water should be regularly watered by the use of several pitches, so that the feet of horses, bulls etc. do not get destroyed.  And by which the people of their army came and went with happiness.  Thus, by doing such acclaimed works, the people continue to enjoy themselves.

( ऋग्वेद १.११७.६ ) #ऋग्वेद #वेद #पथ #राजपुरूष
।। ओ३म् ।।

तद्वां॑ नरा॒ शंस्यं॑ पज्रि॒येण॑ क॒क्षीव॑ता नासत्या॒ परि॑ज्मन्।
 श॒फादश्व॑स्य वा॒जिनो॒ जना॑य श॒तं कु॒म्भाँ अ॑सिञ्चतं॒ मधू॑नाम् ॥

पद पाठ
तत्। वा॒म्। न॒रा॒। शंस्य॑म्। प॒ज्रि॒येण॑। क॒क्षीव॑ता। ना॒स॒त्या॒। परि॑ज्मन्। श॒फात्। अश्व॑स्य। वा॒जिनः॑। जना॑य। श॒तम्। कु॒म्भान्। अ॒सि॒ञ्च॒त॒म्। मधू॑नाम् ॥

राजपुरुषों को चाहिये कि मनुष्य आदि प्राणियों के सुख के लिये मार्ग में अनेक घड़ों के जल से नित्य सींचाव कराया करें, जिससे घोड़े, बैल आदि के पैरों की खूदन से धूर न उड़े। और जिससे मार्ग में अपनी सेना के जन सुख से आवें-जावें। इस प्रकार ऐसे प्रशंसित कामों को करके प्रजाजनों को निरन्तर आनन्द देवें ॥

Rajpurush should ensure that for the happiness of human beings and other animals, water should be regularly watered by the use of several pitches, so that the feet of horses, bulls etc. do not get destroyed.  And by which the people of their army came and went with happiness.  Thus, by doing such acclaimed works, the people continue to enjoy themselves.

( ऋग्वेद १.११७.६ ) #ऋग्वेद #वेद #पथ #राजपुरूष