विस्मृत सी हो गई 'स्मृति', वो कसमें-वादे सब लापरवाह नहीं मैं, 'वक़्त-वक़्त' की बात है सब डर गया था मैं, अपने 'डर' से जीत पाया अब मन में जो निराशा थी, आशा में बदल पाया अब छोड़ गए उस राह पर, दर्द के साथ 'आँसू' अब तन्हा रातें, बेज़ान 'सवेरा' सिसकती 'आहे' अब बहुत देर कर दी है, बचा नहीं कुछ खो गया सब चल रही थी साँसे उसकी, नींद में सो गया वो अब प्रायश्चित अग्नि में जल रहा, 'विरह' में जी रहा अब हत्या कर दी उसके अरमानो की, क़ातिल सा अब लौट नहीं सकता वो वक़्त, वो 'गुड़िया' प्यारी अब विरान 'ज़िन्दगी', 'ज़ख़्म' से आबाद हूँ मैं बस अब विस्मृति का प्रायश्चित:_ विस्मृत सी हो गई 'स्मृति', वो कसमें-वादे सब लापरवाह नहीं मैं, 'वक़्त-वक़्त' की बात है सब डर गया था मैं, अपने 'डर' से जीत पाया अब मन में जो निराशा थी, आशा में बदल पाया अब