उसके हृदय के पोर-पोर में बसा है एक काल्पनिक दुनिया,जिसमें झूठी शान को आजीवन अपने टूटे हुए कंधे पर उठाता है अपने जाति के कुलपति बनने का एहसास कर तालाब का मेंढक बन कर भी खुश रह सकता है नहीं देख पाता उन चिताओं की राख जिसे गंगा में कभी प्रवाहित नहीं किया बेचैन आत्माएं वैसे ही शोभा बढ़ाती है जैसे हरे पेड़ में लगी सूखी लकड़ी जिसे कहीं भी सहज कर उसे सूली पर चढ़ा दिया जाता है ©Rani Yadav #casteism#castawayinindia#life