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अधूरा बचपन जिन गलियों से गुजरते है हम, हमेशा नजर

अधूरा बचपन 

जिन गलियों से गुजरते है हम,
हमेशा नजर आती है उनकी आँखे नम ।

न जानते वो बचपन वाला प्यार,
क्या होते है अपने यार ।

न जानते वो माँ की लोरी,
जन्म से लद जाती  कचरे की बोरी ।

जानते हैं वो सिर्फ कचरा बीनना,
क्या होता है अपनो से मिलना ।

कब हो जाता है उदय-अस्त सुरज,
करते हैं पूरे दिन रोटी की अरज ।

न हैं उन्हे कचरा बीनने मे आलस,
रहती हैं हमेशा  रोटी की लालच ।

क्या होता हैं उनके लिए सम्मान को पाना,
जीवनभर रोते बेचारे पेट के लिए रोना ।

न सोचते वो बनना महलो के नवाब, 
सोचते है बस आज पेट भरने के ख्वाब ।

आँखों मे भरे होते हैं उनके सपने,
किसी के तो वो भी होंगे अपने ।

     
देवासी जगदीश #अधूरा_बचपन
अधूरा बचपन 

जिन गलियों से गुजरते है हम,
हमेशा नजर आती है उनकी आँखे नम ।

न जानते वो बचपन वाला प्यार,
क्या होते है अपने यार ।

न जानते वो माँ की लोरी,
जन्म से लद जाती  कचरे की बोरी ।

जानते हैं वो सिर्फ कचरा बीनना,
क्या होता है अपनो से मिलना ।

कब हो जाता है उदय-अस्त सुरज,
करते हैं पूरे दिन रोटी की अरज ।

न हैं उन्हे कचरा बीनने मे आलस,
रहती हैं हमेशा  रोटी की लालच ।

क्या होता हैं उनके लिए सम्मान को पाना,
जीवनभर रोते बेचारे पेट के लिए रोना ।

न सोचते वो बनना महलो के नवाब, 
सोचते है बस आज पेट भरने के ख्वाब ।

आँखों मे भरे होते हैं उनके सपने,
किसी के तो वो भी होंगे अपने ।

     
देवासी जगदीश #अधूरा_बचपन