ठहर क्यों जाते पथिक तुम शून्य यों भरकर कर दृगों में पथ अनागत है सुनिश्चित आएगी बाधा मगों में अवरोध की इक-इक इकाई स्वयंभू साहस रगों में स्वयं तुमको हर्ष होगा पार कर दुर्गम दुसह ये कोष अनुभव के कह रहें बीते ना स्वर्णिम समय ये साथ छोड़े कोई साथी या समय विपरीत हो ले तुम निरन्तर चलते जाना जब तक हृदय में प्राण बोले है नहीं कोई मिथक ये प्रतीचि वाला सूर्य बोले हो अँधेरों में घिरा पर चलता है धर धीर धीरे और पहुँचकर प्राची में फिर लिखता प्रभा के लेख उजले उसके उद्यम की छटा में चाँद कोई चाँद होले अश्रु में जलता पथिक क्यों जल! दैदीप्य मशाल हो ले तेरे कष्टों की कहानी प्रेरणा के छंद हो लें मार्ग तेरी सर्जना हो और सरस तू काव्य हो ले #toyou#yqendlesswalk#yqlove#yqlife#yqstruggle#yqmotivation