Nojoto: Largest Storytelling Platform

मुझे अफ़सोस है मैं ज़िंदगी से लड़ नहीं पाया। अकेला

मुझे  अफ़सोस  है मैं ज़िंदगी से लड़ नहीं पाया।
अकेला पड़ गया था मैं किसी से लड़ नहीं पाया।
,
मुझे  मालूम था दो चार दिन तक मौत टलती पर।
मगर मैं इक अदद छोटी घड़ी से लड़ नहीं पाया।।
,
कोई भी  राह मंज़िल तक मुझे लेकर नहीं आई।
इसी वहशत के मारे मैं ख़ुदी से लड़ नहीं पाया।।
,
बहाने   बन   तो  सकते  है  समंदर के किनारे हूँ।
लेकिन मैं सच में अपनी तिश्नगी से लड़ नहीं पाया।।
,
रसोई  घर नहीं चलती है लफ़्ज़ों के मरासिम से।
मैं भूका था तो खाली तश्तरी से लड़ नहीं पाया।।
,
ग़ज़ल  को  सींचता  हूँ  रोज़ अपना मैं लहूँ देकर।
लेकिन देखो तो मैं भी शाइरी से लड़ नहीं पाया।।
,
किसी  से  क्या  कहूँ  ऐसा अंधेरा ज़िंदगी में था।
मैं बाहर दिख रही इक रौशनी से लड़ नहीं पाया।
,
उसूलों पर रहा कायम मैं अपने जीते जी साहिल।
मगर मैं ज़िंदगी भर मुफ़्लिसी से लड़ नहीं पाया।।
#रमेश

©Ramesh Singh
मुझे  अफ़सोस  है मैं ज़िंदगी से लड़ नहीं पाया।
अकेला पड़ गया था मैं किसी से लड़ नहीं पाया।
,
मुझे  मालूम था दो चार दिन तक मौत टलती पर।
मगर मैं इक अदद छोटी घड़ी से लड़ नहीं पाया।।
,
कोई भी  राह मंज़िल तक मुझे लेकर नहीं आई।
इसी वहशत के मारे मैं ख़ुदी से लड़ नहीं पाया।।
,
बहाने   बन   तो  सकते  है  समंदर के किनारे हूँ।
लेकिन मैं सच में अपनी तिश्नगी से लड़ नहीं पाया।।
,
रसोई  घर नहीं चलती है लफ़्ज़ों के मरासिम से।
मैं भूका था तो खाली तश्तरी से लड़ नहीं पाया।।
,
ग़ज़ल  को  सींचता  हूँ  रोज़ अपना मैं लहूँ देकर।
लेकिन देखो तो मैं भी शाइरी से लड़ नहीं पाया।।
,
किसी  से  क्या  कहूँ  ऐसा अंधेरा ज़िंदगी में था।
मैं बाहर दिख रही इक रौशनी से लड़ नहीं पाया।
,
उसूलों पर रहा कायम मैं अपने जीते जी साहिल।
मगर मैं ज़िंदगी भर मुफ़्लिसी से लड़ नहीं पाया।।
#रमेश

©Ramesh Singh
rameshsingh8886

Ramesh Singh

New Creator