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निकली ना थी बोली भी उस नवजात बच्चे की खेल खिलौने अ

निकली ना थी बोली भी उस नवजात बच्चे की
खेल खिलौने अब तक थे ना छूटे उन मासूम बच्चों के
तरस ना आया था बेदर्दो को उन असहाय बूढ़ो पे
अमृतसर की स्वर्ण भूमि को अंग्रेजों ने था रंगीन किया
बूढ़ी मां बहनों को भी उन बेदर्दो ने था ना बख्शा 
अंधाधुंध थी चली गोलियां उन निहत्थे लोगों पर
अंग्रेज़ो के अत्याचार से चारों तरफ थी त्राहि-त्राहि मची
जालियांवाला बाग की घटना है ये इक
खौफनाक सच ना समझों कोई झूठ इसे।

©Sarita Kumari Ravidas
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