त्योहार मुबारक रंग हवा का लाल हुआ है,घर मेरा पाताल हुआ है ज़ख्मी मेरा विश्व् हुआ ,ज़ख्मी माँ का लाल हुआ है। कैसे कहूँ त्योहार मुबारक, देखो क्या क्या हाल हुआ है नंगे दरख़्त हैं ,झुलसे पत्ते, पथरीले हैं सारे रस्ते बरस रही मौत की बारिश,करुणा का अकाल हुआ है कैसे कहूँ त्योहार मुबारक, देखो क्या क्या हाल हुआ है गिरते बम हैं बरसती गोलियां,नाच रहीं गिध्दों की टोलियां भूख से मरता मानव कैसे,जिंदा ही कंकाल हुआ है। कैसे कहूँ त्योहार मुबारक, देखो क्या क्या हाल हुआ है बच्चों की ये चीख पुकारें,अबलाओं की हाहाकारें रोज़ मौत की करें दुआएं,जीना ऐसा मुहाल हुआ है। कैसे कहूँ त्योहार मुबारक, देखो क्या क्या हाल हुआ है अमन चैन क्यों मिलता नहीं,दिल भाई का पिघलता नहीं पानी भी कोई बहाए नहीं यूँ,दरिया सारा लाल हुआ है। कैसे कहूँ त्योहार मुबारक, देखो क्या क्या हाल हुआ है ©विशाल गुप्ता #poetry #humanity #siriya