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गाँव की जमीनी दावत तुम्हारे उस शहर के हवाई बफर वा

 गाँव की जमीनी दावत तुम्हारे उस शहर के हवाई बफर वाले प्रचलन से कई गुना स्वादिष्ट , भरपेट और खाने की बचत के मामले में भी अब्बल दर्जे की होती है ।
पर
एक फर्क भी है दोनों में कि गाँव की दावत में जातियाँ साफ दिख जाती हैं 
आज ऐसी ही एक दावत में खाने के वक़्त ध्यान कोने में सबसे अलग बैठे उन 5 बच्चों पर गया , अरे...! गिनती याद है क्यूंकि अलग तो किसी ने ऋग्वेद , किसी ने ब्रह्मा जी के शरीर से उत्पत्ति , तो किसी ने मनुस्मृति की दलीलों से कर ही दी है ,इसलिए आसानी हुई गिनने में अल्पसंख्यक थे वाकई वहाँ बैठे वो 5 ।
जमीन पर तो सभी थे पर अंतर यह था कि हमारे नीचे कालीन थी और उनके नीचे सिर्फ ज़मीन । अरे अछूत थे वो उन्हें छुआ नहीं जाता ऐसा समाज ने धर्मग्रंथों के लिहाज से कूट कूट कर भरा है हमारे दिमाग में । एक को कुछ महीने पहले मैंने पढ़ाया भी है और आज इस जाति की अभेद दीवार के बावजूद उसकी आँखों ने बिना कुछ कहे काफी कुछ बयाँ भी कर दिया।
 हर बार की तरह वह पास आया चेहरे पर हल्की सी मुस्कान के साथ , कुछ कह पाता उससे पहले ही याद दिला दिया वो वाकिया जिसे पहले भी उसे सुना चुका था - अरे यही कि कुछ साल पहले घर पर हुए एक कार्यक्रम में " S.D.M. " साहब आये थे, वोे कुर्सी पर बैठे और सब अगल बगल खड़े थे और हाँ उच्च वर्ग कहे जाने वाले लोग भी खड़े ही थे । खाना भी खाया और उन्हीं बर्तनों में नाश्ता पानी भी दिया गया । उनके जाने के बाद बताया गया कि कलक्टर साहब भी अछूत (भंगी/मेहतर) जाति से है पर उन्हें कुर्सी और सम्मान मिला ।
फिर से कह दिया कि बेटा -" only your class can cover your caste " #nojotofamily #nojoto #nojotostory #nojotopoetry #story #कहानी #जाति #casticism #caste
 गाँव की जमीनी दावत तुम्हारे उस शहर के हवाई बफर वाले प्रचलन से कई गुना स्वादिष्ट , भरपेट और खाने की बचत के मामले में भी अब्बल दर्जे की होती है ।
पर
एक फर्क भी है दोनों में कि गाँव की दावत में जातियाँ साफ दिख जाती हैं 
आज ऐसी ही एक दावत में खाने के वक़्त ध्यान कोने में सबसे अलग बैठे उन 5 बच्चों पर गया , अरे...! गिनती याद है क्यूंकि अलग तो किसी ने ऋग्वेद , किसी ने ब्रह्मा जी के शरीर से उत्पत्ति , तो किसी ने मनुस्मृति की दलीलों से कर ही दी है ,इसलिए आसानी हुई गिनने में अल्पसंख्यक थे वाकई वहाँ बैठे वो 5 ।
जमीन पर तो सभी थे पर अंतर यह था कि हमारे नीचे कालीन थी और उनके नीचे सिर्फ ज़मीन । अरे अछूत थे वो उन्हें छुआ नहीं जाता ऐसा समाज ने धर्मग्रंथों के लिहाज से कूट कूट कर भरा है हमारे दिमाग में । एक को कुछ महीने पहले मैंने पढ़ाया भी है और आज इस जाति की अभेद दीवार के बावजूद उसकी आँखों ने बिना कुछ कहे काफी कुछ बयाँ भी कर दिया।
 हर बार की तरह वह पास आया चेहरे पर हल्की सी मुस्कान के साथ , कुछ कह पाता उससे पहले ही याद दिला दिया वो वाकिया जिसे पहले भी उसे सुना चुका था - अरे यही कि कुछ साल पहले घर पर हुए एक कार्यक्रम में " S.D.M. " साहब आये थे, वोे कुर्सी पर बैठे और सब अगल बगल खड़े थे और हाँ उच्च वर्ग कहे जाने वाले लोग भी खड़े ही थे । खाना भी खाया और उन्हीं बर्तनों में नाश्ता पानी भी दिया गया । उनके जाने के बाद बताया गया कि कलक्टर साहब भी अछूत (भंगी/मेहतर) जाति से है पर उन्हें कुर्सी और सम्मान मिला ।
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