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ग़ज़ल 122 - 122 - 122 - 122 दबी चाहतों  को  जग


ग़ज़ल 

122 - 122 - 122 - 122

दबी चाहतों  को  जगाना  नहीं  है। 
हमें आप  से  दिल लगाना नहीं  है।

मुहब्बत  हमें  राश आती कहाँ अब, 
नया  दर्द  दिल में  जगाना नहीं है।

हमें क्या पता हाल दिल का तुम्हारे,
कभी  आपने  ये  बताया  नहीं  है। 

किसी को कहे बात दिल की हमारे, 
कभी ज़ख्म अपने दिखाना नहीं है। 

चलो आज खुद से, करे वादा उमा ये, 
कभी  प्यार  में  दिल  जलाना नहीं है।

©Uma Vaishnav
  #Likho #gajal