तेरी बुराइयों को हर अख़बार कहता है, और तू मेरे गांव को गँवार कहता है । ऐ शहर मुझे तेरी औक़ात पता है, तू चुल्लू भर पानी को भी वाटर पार्क कहता है । थक गया है हर शख़्स काम करते करते , तू इसे अमीरी का बाज़ार कहता है। गांव चलो वक्त ही वक्त है सबके पास , तेरी सारी फ़ुर्सत तेरा इतवार कहता है । मौन होकर फोन पर रिश्ते निभाए जा रहे हैं , तू इस मशीनी दौर को परिवार कहता है । जिनकी सेवा में खपा देते थे जीवन सारा, तू उन माँ बाप को अब भार कहता है । बैठ जाते थे अपने पराये सब बैलगाडी में, पूरा परिवार भी न बैठ पाये उसे तू कार कहता है । ____________________________ संपूर्ण - अज्ञात #मेरा गांव