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कवि का प्रेम शिव होता है जो हमेशा ध्यान मे लिन हो

कवि का प्रेम शिव होता है जो हमेशा 
ध्यान मे लिन होता है आपने सती के लिए 
पर दुनिया को सिर्फ भ्रम दिखता है.... 

उसकी इन्द्रियां स्थापित होती है 
त्रिनेत्र मे 
ठीक भौव के बीचो बीच 

जहा सती का ज्वाला उसके पूरे 
बदन को बाँध देता है प्रेमपाश से.... 

तब अंत क्या और आरम्भ क्या 

ब्रहमांड... आकाशगंगा.... सब अधीन 
हो जाते है इस प्रेम के आगे


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©चाँदनी पता है

कवि को एक अन्तराल के बाद कविता
ना लिखना हो ना सही

पर शब्दों को प्रेम के भाव से विभोर कर 
देना चाहिए...

पता है कवि को एक अन्तराल के बाद कविता ना लिखना हो ना सही पर शब्दों को प्रेम के भाव से विभोर कर देना चाहिए...

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