बेसब्र होकर दौड़ रहीं हूँ, खुशियों के पीछे मैं इश्क़ के ग़म से "तड़पती" हुई रूह के संग मैं दर्द में बसर कब तलक मेरी "जिंदगानी" होगी कब तक यह "साँसे" मेरी मुझ से बेगानी होगी हर लम्हा इंतज़ार का "दर्द" का सबक दे जाता दूर तक ख़ुशियों का मकान "नज़र" नहीं आता धड़कन ने बग़ावत अब "दिल" से शुरू कर दी कहाँ है वो जिसने "साँसो" को जीने वज़ह दी ♥️ Challenge-575 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) ♥️ विषय को अपने शब्दों से सजाइए। ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें।