नित नित नयनो में स्वप्न जगाती कब हो मिलन का सवेरा, विरले ही मुझे बस रंग देता उफ़्फ़ ये रंगों सा इश्क़ तेरा, मेरे आहत व क्रंदन हृदयाघात को स्पर्श तेरा मनुहार करे, सिर्फ़ तेरे श्वाशो के स्पंदन से छट जाता फिर काला अँधेरा, मिलन की सरिता सर सर निर्झरिणी सी अनवरत बहती है, जैसे क्षितिज में अंतराल का मानो कोई लगा हो एक फेरा, चिंतित मन भार से पीड़ित अनायास ही सोच में पड़ जाता है, मेरे तिमिर को कर प्रकाशमान मिटा दो जीवन का तुम घनेरा, विस्तृत असीमित नभ में अनगिनत चहुँओर फैले जो तारे है, ऐसे ही अमिट अनन्त हो सातों जन्म का ये बंधन तेरा मेरा।। नमस्ते रचनाकारों 🙏🏼 जैसा कि आप सभी जानते है आदरणीया सुनीता जौहरी जी द्वारा kitab-e-zindagi मंच पर हर शुक्रवार, kitab-e-ras क्लास आयोजित किया जा रहा है जिसमें हर शुक्रवार को एक रस के बारे में जानकारी दी जाएगी, कल kitab-e-ras का प्रथम भाग लाया गया था, जिसमें आप सभी ने पढ़ा.......... ⚡रस क्या है? स्थायी भाव क्या है? ⚡श्रृंगार या शृंगार रस क्या है,किसे कहते हैं? ⚡श्रृंगार या शृंगार रस का स्थायी भाव क्या है? ⚡श्रृंगार रस का आलंबन कौन है? ⚡श्रृंगार रस का उद्दीपन कौन- कौन है ?