बूँद-बूँद पसीने की जब मिट्टी में मिल जाती है चींख-चींख गगनचुम्बियां श्रम आभास कराती हैं रचनाकार बन जाता जब ब्रम्ह आभास कराती हैं भू में भूधर-सी इमारतें