हम खुदगर्ज़ हो गए, बदलना तो चाहा नही कभी पर पतों की ओस सा पिघल अब पाषाण हो गए । कभी दूसरों को तबजो दिया करते थे आज खुद को नसीहत दे रहे, पहले नज्म लिखा करते थे आज गज़ल हो गए, हम खुदगर्ज़ हो गए । महफिलो की शान हुआ करते थे, आज काफिलो मे गुमनाम हो गए दुनियाँ की सच्चाई से रूबरू क्या हुए, हम फरेब और बेईमान हो गए । खुद को जरा पेहचान ना क्या सिखा, हम तो सबके बीच अनजान बन गए, हम खुदगर्ज़ और बेईमान हो गए ।