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गिरा के भागे न बम भी असेंबली से हम। उड़ाए फिरता था

गिरा के भागे न बम भी असेंबली से हम। उड़ाए फिरता था हमको खयाले-मुस्तकबिल, कि बैठ सकते न थे दिल की बेकली से हम। हम इंकलाब की कुरबानगह पे चढ़ते हैं, कि प्यार करते हैं ऐसे महाबली से हम। जो जी में आए तेरे, शौक से सुनाए जा, कि तैश खाते नहीं हैं कटी-जली से हम। न हो तू चीं-ब-जबीं, तिवरियों पे डाल न बल, चले-चले ओ सितमगर, तेरी गली से हम।

©vishal verma
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