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नश्वर है सँसार, फिर अहंकार काहे का, कोई नही है

 नश्वर है सँसार,  फिर अहंकार  काहे  का,
कोई नही है संग फिर ,ये विचार काहे का,

दुःख में साथ नही कोई,पर सुख हर कोई,
रिश्ते हैं सारे भ्रम , फ़िर जंजाल काहे का,

ख़ाली हाथ आये हैं  ,खाली हाथ जाना है,
क्यूँ  दौलत  पे  जंग, ये  तक़रार काहे का,

माटी की देह ,एक दिन माटी में मिल जाएगी,
बस मौत है अंतिम सत्य ,ये इंकार  काहे का,

ये  रूप  ये काया  तो ,मात्र  एक   छलावा है,
एक दिन ढल जाएगा रंग, तो गुमान काहे का,

चार दिन की ज़िन्दगी ,क्यूँ पाप में बिताते हो,
एक दिन हो जाओगे तंग,ये अभिमान काहे का।।

-पूनम आत्रेय

©poonam atrey
  #नश्वर