कुछ तिनके जोड़े और घर बना लिए, पानी ना मिला तो बारिश में नहा लिए, वो बचपन भी कितना प्यारा था ना साहब, जहां चंद कागज़ मोड़ मरोड़ के पानी पे, अपने नाव-जहाज चला लिए... चंद सिक्के जोड़े, आइसक्रीम कुल्फी गोलगप्पे खा लिए, तो कभी चंद सिक्के मंदिर मस्ज़िद में चढ़ा दिए, वो बचपन भी कितना प्यारा था ना साहब, जहां किसी के पेड़ खेत बाग़ से, फल चुरा के खा लिए... जब गलती करते और पिटते थे, तो कभी भाई बहन पे या किसी और पे, इलज़ाम लगा दिए, पकड़ा गया जब झूठ तो रोनी सी सूरत बना लिए, वो बचपन भी कितना प्यारा था ना साहब, जब एक टॉफी मिलने पे मुस्कुरा दिए...