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होकर बेगुनाह पाना सजा कुछ और है। तन्हाइयों में छि

होकर बेगुनाह पाना सजा कुछ और है।

तन्हाइयों में छिप के दीवारों से देखती हो
देखती जाओ, पास मेरे न बचा कुछ और है
सूखे गुलाब के तोहफे से इश्क़ करता आज भी
तेरे बाद अब तुझ सा कहां जचा कुछ और है।

हंसना हंसाना तो पेशे से काम है मेरा
पूछे तो कोई, हंसते चेहरे के पीछे छिपा कुछ और है
तेरे दिए जख्मों को नुमायशी में लगा रखा है
लोगों को सजावट के सिवा न दिखा कुछ और है।

जमाने की जरूरतों ने ज़िन्दगी जीना सीख दिया
संग तेरे सपनों में सजाया था, वो जहां कुछ और है
चलो न हमारे ख्वाहिशों से बुनी ख्वाबों की दुनिया 
साथ न हो तुम, अब क्या बचा यहां कुछ और है
.....की तुझे सोचने का मजा कुछ और है। #madhusudanmohit
होकर बेगुनाह पाना सजा कुछ और है।

तन्हाइयों में छिप के दीवारों से देखती हो
देखती जाओ, पास मेरे न बचा कुछ और है
सूखे गुलाब के तोहफे से इश्क़ करता आज भी
तेरे बाद अब तुझ सा कहां जचा कुछ और है।

हंसना हंसाना तो पेशे से काम है मेरा
पूछे तो कोई, हंसते चेहरे के पीछे छिपा कुछ और है
तेरे दिए जख्मों को नुमायशी में लगा रखा है
लोगों को सजावट के सिवा न दिखा कुछ और है।

जमाने की जरूरतों ने ज़िन्दगी जीना सीख दिया
संग तेरे सपनों में सजाया था, वो जहां कुछ और है
चलो न हमारे ख्वाहिशों से बुनी ख्वाबों की दुनिया 
साथ न हो तुम, अब क्या बचा यहां कुछ और है
.....की तुझे सोचने का मजा कुछ और है। #madhusudanmohit