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तेरी पहचान से मिले नंबर पर, आज भी बातें होती हैं।

तेरी पहचान से मिले नंबर पर, आज भी बातें होती हैं।
 कमरे में लगी उस फोटो से, दुनिया मुखातिब होती है।
 संभाली गई फोटोज़ में, तुम आज भी प्यारे लगते हो। 
तुम्हारे ख़त के पन्नों की, ख़ुशबू सुहानी लगती है।

तुम्हारे दिए उस कुकर में, आज भी सीटी बजती है।
 तुम्हारे उस इंडक्शन से, आज भी दाल उबलती है।

तुम्हारे साथ के पल मैं, आज भी याद करता हूँ। 
तुम्हारे दिए सपनों में, आज भी उड़ान भरता हूँ। 
तुम्हारी ही चाहत में, योगेश की नींद भी प्यारी होती है।
 बस अकेले कमरे में, तकिये की यारी होती है।

©Yogesh Khatodiyaa
  तुम्हारे ख़त के पन्ने - योगेश खातोदिया 
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