सुनो यारो- बहुत तकलीफ होती है, हिज्र-ओ-फ़िराक़ जीने में, दर्द ही लिये मैंने दर्द ही लिखे मैंने, दर्द के तस्सबुर में दर्द ही सहे मैंने, दर्द में सुकूं गजब है,दर्द भी कुछ बे-अदब है, दर्द जो समझता है,शख्स वो फरिस्ता है, दर्द जो मुक़म्मल हो, दर्द भी फिरबिकता है, दर्द क्यो कहे जायें? दर्द क्यो सुने जायें ? दर्द ही क्यों लिखें जायें ? दिल ही क्यों दियें जायें ? सुनो यारो......