प्रातः काल की बेला,,मनभावन छेला पवन मंत्रमुग्ध करती,,तन मन में स्फूर्ति भरती ऐ प्रकृति तू सुबह मेरी,, तू ही मेरी शाम,, तुझसे ही हैं,,बहुरूपी आयाम,,, तू प्रेम की उत्पत्ति,,,तुझ पर ही समाप्ति,,, तुझसे ही जन्म,,,तुझ पर ही मरण,,, जीवन तुझसे,,,यौवन तुझसे,,, इस देह में बह रही,,श्वास तुझसे,,,