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मैं चाहता हूँ कि कभी हिमालय के पहाड़ों से,गंगा के क

मैं चाहता हूँ कि कभी
हिमालय के पहाड़ों से,गंगा के कछारों से,
थार की बयारों से, सागर के किनारों से,
बड़े शहरों के शोर से खेत में खड़े मंदिर की
चौखट लांघती भोर से,पुरवोत्तर के छोर से,
राजधानी के पेंचीदगियों से,
देहात की संजिदगियों से,
फसलों से पटे खलिहानों से,
बंजर और बीहड़ मैदानों से,
घने जंगलों से, जूझते जीवन के अमंगलों से,
हर दिशा से, हर प्रदेश से,
गरीब के सहारे, अमीर आंखों के तारे,
मजदूर के हाथ, कमजोर की लाठी,
ग्वाले के चरवाहे, पंडितों के दीप की बाती,
गंभीर, चंचल, हठी और प्रांजल,
सारे बच्चे जमा हों और
बताएं वो एक-दूसरे को वो कहानियां
जिनसे दूसरे अनजान थे,
बच्चे पहले ही जान लें कि
पहाड़ चढ़ने को हैं, गिरने को नहीं,
धरती बोने को है, वन उपवन नहीं हैं,
सागर बड़े हैं आशाओं से, लू बेदर्द हैं,
एक ही सूर्य है, एक ही अर्घ्य का फल,
एक ही जिंदगी है जीने को, एक ही कल।
बच्चे जानें कि तम्बाकू और हिंसा पाप है,
बच्चे जानें कि बड़ों के क्यों ये हालात हैं! Cont... बच्चे सीखें 1
मैं चाहता हूँ कि कभी
हिमालय के पहाड़ों से,गंगा के कछारों से,
थार की बयारों से, सागर के किनारों से,
बड़े शहरों के शोर से खेत में खड़े मंदिर की
चौखट लांघती भोर से,पुरवोत्तर के छोर से,
राजधानी के पेंचीदगियों से,
देहात की संजिदगियों से,
फसलों से पटे खलिहानों से,
बंजर और बीहड़ मैदानों से,
घने जंगलों से, जूझते जीवन के अमंगलों से,
हर दिशा से, हर प्रदेश से,
गरीब के सहारे, अमीर आंखों के तारे,
मजदूर के हाथ, कमजोर की लाठी,
ग्वाले के चरवाहे, पंडितों के दीप की बाती,
गंभीर, चंचल, हठी और प्रांजल,
सारे बच्चे जमा हों और
बताएं वो एक-दूसरे को वो कहानियां
जिनसे दूसरे अनजान थे,
बच्चे पहले ही जान लें कि
पहाड़ चढ़ने को हैं, गिरने को नहीं,
धरती बोने को है, वन उपवन नहीं हैं,
सागर बड़े हैं आशाओं से, लू बेदर्द हैं,
एक ही सूर्य है, एक ही अर्घ्य का फल,
एक ही जिंदगी है जीने को, एक ही कल।
बच्चे जानें कि तम्बाकू और हिंसा पाप है,
बच्चे जानें कि बड़ों के क्यों ये हालात हैं! Cont... बच्चे सीखें 1