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कई राखियाँ निकली,बहन ने मायके की दहलीज़ ना लांघी,

कई राखियाँ निकली,बहन ने मायके की दहलीज़ ना लांघी,
"रिश्ते" सामाजिक "आपदा" का शिकार,समाज ने हमेशा पैर में बेड़ियाँ बाँधी।

उसके प्यार की बात सबने"प्राकृतिक"आपदा सी झेली,
जैसे वन की आग हो,सनसनी बात समाज में फैली।

जबसे उसने मनचाहा ब्याह किया तबसे ना लौटी,
बच्चों ने कभी ना देखी,जो बुआ हैं इकलौती

ससुराल कहे दूसरे घर से आई,"क़दर" उसकी किसी ने ना जानी,
मायके में कहा दूसरे घर ही जानी,आनी-जानी एक औरत की कहानी।

"सूझबूझ" से नई पीढ़ी की,बेटी अपने मायके आई हैं,
माँ-बाप रहे नहीं,भाई-बहन की आँखों में बाढ़ आई हैं।

जो प्यार हो सच्चा,जानवर इंसान से लगे,
सब पेड़,प्रकृति भगवान सी लगे,
जो मन में प्रेम ना हो तो,इंसान भी आपदा से लगें,
समाज की ही सोचे,तो छोटी बात भी विपदा सी लगे।  कोरा काग़ज़ की प्रतियोगिता हम लिखते रहेंगे के लिए टीम काव्यांजलि के नौवें दिन के शब्द।

 सभी को शुभकामनाएँ

कई राखियाँ निकली,बहन ने मायके की दहलीज़ ना लांघी,
"रिश्ते" सामाजिक "आपदा" का शिकार,समाज ने हमेशा पैर में बेड़ियाँ बाँधी।

उसके प्यार की बात सबने"प्राकृतिक"आपदा सी झेली,
कई राखियाँ निकली,बहन ने मायके की दहलीज़ ना लांघी,
"रिश्ते" सामाजिक "आपदा" का शिकार,समाज ने हमेशा पैर में बेड़ियाँ बाँधी।

उसके प्यार की बात सबने"प्राकृतिक"आपदा सी झेली,
जैसे वन की आग हो,सनसनी बात समाज में फैली।

जबसे उसने मनचाहा ब्याह किया तबसे ना लौटी,
बच्चों ने कभी ना देखी,जो बुआ हैं इकलौती

ससुराल कहे दूसरे घर से आई,"क़दर" उसकी किसी ने ना जानी,
मायके में कहा दूसरे घर ही जानी,आनी-जानी एक औरत की कहानी।

"सूझबूझ" से नई पीढ़ी की,बेटी अपने मायके आई हैं,
माँ-बाप रहे नहीं,भाई-बहन की आँखों में बाढ़ आई हैं।

जो प्यार हो सच्चा,जानवर इंसान से लगे,
सब पेड़,प्रकृति भगवान सी लगे,
जो मन में प्रेम ना हो तो,इंसान भी आपदा से लगें,
समाज की ही सोचे,तो छोटी बात भी विपदा सी लगे।  कोरा काग़ज़ की प्रतियोगिता हम लिखते रहेंगे के लिए टीम काव्यांजलि के नौवें दिन के शब्द।

 सभी को शुभकामनाएँ

कई राखियाँ निकली,बहन ने मायके की दहलीज़ ना लांघी,
"रिश्ते" सामाजिक "आपदा" का शिकार,समाज ने हमेशा पैर में बेड़ियाँ बाँधी।

उसके प्यार की बात सबने"प्राकृतिक"आपदा सी झेली,